A “stay of further proceeding” is a court order that temporarily stops all legal action in a case until a higher court makes a final ruling or the original court lifts the stay. It is used to preserve the status quo, prevent irreversible harm, or resolve a legal dispute, and can be granted at the request of a party or issued by the court itself.
🧾 मामला- 1: संक्षेप में
- आपका केस सी.जे.एम. (मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट) कोर्ट में लंबित है,
लेकिन अभी सेशंस कोर्ट (जिला एवं सत्र न्यायालय) में कमिट नहीं हुआ है। - इस बीच हाई कोर्ट ने केस पर “स्टे” (stay order) दे दिया है।
- अभियुक्त (accused) को पहले ही सेशंस कोर्ट से रेगुलर बेल मिल चुकी है।
- लेकिन अभियुक्त ने अभी तक सी.जे.एम. कोर्ट में आत्मसमर्पण (surrender) करके बेल बॉन्ड दाखिल नहीं किया है।
- अगली तारीख पर वकील भी पेश नहीं हुए, क्योंकि मामला “स्टे” में है और कोई कार्यवाही नहीं होनी चाहिए थी।
⚖️ कानूनी स्थिति
- हाई कोर्ट के स्टे ऑर्डर का प्रभाव
- जब हाई कोर्ट किसी केस की कार्यवाही पर “स्टे” देता है, तो निचली अदालत (CJM) उस केस में कोई कार्यवाही आगे नहीं बढ़ा सकती।
- इसका मतलब यह है कि न तो अभियुक्त की उपस्थिति जरूरी होती है, और न कोई ज़बरदस्ती की कार्रवाई (जैसे वारंट) की जा सकती है।
- CJM कोर्ट में अनुपस्थिति (Non-Appearance)
- अगर केस “स्टे” में है और उस तारीख पर वकील या अभियुक्त नहीं गए, तो इसे ग़ैरहाज़िरी या डिफ़ॉल्ट नहीं माना जाएगा।
- कोर्ट को सिर्फ़ इतना लिखना चाहिए कि “मामला उच्च न्यायालय के स्थगन आदेश (Stay) के कारण लंबित है।”
- सरेन्डर-कम-बेल की प्रक्रिया
- जब किसी को सेशंस कोर्ट से बेल मिलती है, तो उसे CJM कोर्ट में जाकर आत्मसमर्पण (surrender) कर बेल बॉन्ड भरना पड़ता है, ताकि बेल औपचारिक रूप से लागू हो सके।
- अभी केस पर “स्टे” है, इसलिए यह प्रक्रिया स्टे हटने के बाद करनी होगी।
🧭 आगे के कदम
- हाई कोर्ट के स्टे ऑर्डर की सटीक भाषा (wording) देखें।
- अगर लिखा है — “Further proceedings in the case are stayed” तो CJM कोर्ट कोई कार्यवाही नहीं कर सकती।
- अगर लिखा है — “No coercive steps shall be taken”, तो उपस्थिति औपचारिक रूप से ली जा सकती है, पर ज़बरदस्ती नहीं।
- CJM कोर्ट में एक साधारण “मेमो” (memo) दाखिल करें।
इस मेमो में लिखा जाए: “माननीय उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक ___ को इस प्रकरण की कार्यवाही स्थगित (स्टे) की गई है, अतः इस केस को उसी आधार पर स्थगित किया जाए।” - अनुपस्थिति पर कोई दंड या प्रतिकूल आदेश नहीं बनता, जब केस पर हाई कोर्ट का स्टे लागू है।
- जैसे ही स्टे हटे, अभियुक्त को तुरंत CJM कोर्ट में आत्मसमर्पण (surrender) कर बेल बॉन्ड भरना होगा।
📝 सारांश
- ✅ स्टे के दौरान कोई कार्यवाही नहीं होगी।
- ✅ वकील या अभियुक्त की अनुपस्थिति “ग़ैरहाज़िरी” नहीं मानी जाएगी।
- ⚠️ स्टे हटने के बाद अभियुक्त को आत्मसमर्पण और बेल की औपचारिकता पूरी करनी होगी।
- 🧾 बेहतर होगा कि वकील CJM कोर्ट में स्टे ऑर्डर की कॉपी लगाकर मेमो दाखिल कर दें।
नीचे कुछ प्रमुख संदर्भ (Legal References) दिए जा रहे हैं 👇:
⚖️ 1. Asian Resurfacing of Road Agency Pvt. Ltd. v. CBI
Citation: (2018) 16 SCC 299 (Supreme Court)
मुख्य बिंदु:
- जब किसी मुकदमे की कार्यवाही पर Stay (स्थगन) दिया जाता है, तो निचली अदालत को कार्यवाही रोकनी होती है।
- हाई कोर्ट द्वारा दिया गया Stay जब तक हटाया न जाए, तब तक Trial Court को कोई coercive action (जैसे उपस्थिति की मांग, वारंट आदि) नहीं लेना चाहिए।
🟩 उद्धरण (Para 29):
“Once the proceedings are stayed by the High Court, the subordinate court cannot take up the matter till the stay is vacated or modified.”
⚖️ 2. State of Rajasthan v. Kishan Lal & Ors.
Citation: (1981) 4 SCC 559
मुख्य बिंदु:
- यदि कोई मामला उच्च न्यायालय में लंबित है और उसकी कार्यवाही पर stay है, तो निचली अदालत उस पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकती।
- ऐसी स्थिति में अभियुक्त या वकील की गैर-हाज़िरी को “डिफ़ॉल्ट” या “फरार” नहीं माना जा सकता।
⚖️ 3. R. Rajagopal Reddy v. Padmini Chandrasekharan
Citation: (1995) 2 SCC 630
मुख्य बिंदु:
- Stay आदेश के दौरान subordinate court की jurisdiction स्थगित रहती है, अर्थात् वह अदालत उस केस में आगे कुछ नहीं कर सकती।
⚖️ 4. Allahabad High Court – Ajay Kumar v. State of U.P., 2012 CriLJ 1533
मुख्य बिंदु:
- जब हाई कोर्ट ने किसी केस पर stay लगाया हो, तो ट्रायल कोर्ट द्वारा अभियुक्त की उपस्थिति माँगना या अनुपस्थिति में कोई आदेश देना न्यायिक त्रुटि (Judicial Error) माना जाएगा।
- अभियुक्त या अधिवक्ता की अनुपस्थिति “जायज” मानी जाएगी।
⚖️ 5. Patna High Court – Md. Idris v. State of Bihar, 2006 (3) PLJR 211
मुख्य बिंदु:
- यदि किसी केस की कार्यवाही पर stay लागू है, तो अभियुक्त की उपस्थिति की आवश्यकता नहीं होती।
- ऐसे में कोर्ट को केवल “Case kept pending due to High Court stay” लिखना चाहिए।
🧾 निष्कर्ष
इन सभी निर्णयों से यह स्पष्ट होता है कि:
- हाई कोर्ट के “Stay” आदेश के दौरान CJM Court कोई कार्यवाही नहीं कर सकती।
- अभियुक्त या अधिवक्ता की अनुपस्थिति “default” नहीं मानी जा सकती।
- स्टे हटने के बाद ही आगे की कार्यवाही (जैसे surrender-cum-bail आदि) की जाएगी।
✅ बिलकुल सही — आपने ठीक समझा।
अगर आपके केस में हाई कोर्ट ने “Stay” (स्थगन आदेश) दिया हुआ है, तो अभियुक्त के अनुपस्थित रहने से कोई समस्या नहीं होती, जब तक वह Stay लागू है।
⚖️ विस्तार से समझिए:
- जब हाई कोर्ट ने केस की कार्यवाही पर Stay दिया है —
- तब CJM (या कोई भी निचली अदालत) उस केस में कोई आगे की कार्यवाही नहीं कर सकती।
- इसका मतलब है: ना गवाह पेश होंगे, ना आरोप तय होंगे, ना अभियुक्त की उपस्थिति अनिवार्य होगी।
- अभियुक्त की अनुपस्थिति उस अवधि में “डिफ़ॉल्ट” नहीं मानी जाएगी।
- कोर्ट अभियुक्त को “फरार” या “ग़ैरहाज़िर” नहीं कह सकती।
- ना ही कोई NBW (Non-bailable warrant) या coercive order जारी किया जा सकता है।
- वकील या अभियुक्त चाहें तो एक “मेमो” दाखिल कर दें:
जिससे रिकॉर्ड में साफ़ हो जाए कि हाई कोर्ट का स्टे लागू है।
उदाहरण के लिए: “माननीय उच्च न्यायालय द्वारा इस प्रकरण की कार्यवाही पर दिनांक ___ को स्थगन आदेश (Stay Order) दिया गया है। अतः अभियुक्त की उपस्थिति की आवश्यकता नहीं है, कृपया इस केस को स्थगित (adjourn) किया जाए।” - जब स्टे समाप्त हो जाए (vacate हो जाए) —
तभी अभियुक्त को CJM कोर्ट में उपस्थित होकर सरेन्डर-कम-बेल (surrender-cum-bail) की प्रक्रिया करनी होगी।
🧾 निष्कर्ष (Summary)
| स्थिति | परिणाम |
|---|---|
| केस पर हाई कोर्ट का Stay लागू है | अभियुक्त की अनुपस्थिति से कोई दिक्कत नहीं |
| Stay के दौरान CJM कोर्ट की कार्यवाही | स्थगित (रुकी हुई) रहेगी |
| Stay हटने के बाद | अभियुक्त को उपस्थित होकर बेल बॉन्ड दाखिल करना होगा |
तो हाँ, 🔹जब तक हाई कोर्ट का Stay प्रभावी है, अभियुक्त के अनुपस्थित रहने में कोई समस्या नहीं है।
फिर भी, एक बार अपने वकील से कहें कि Stay की कॉपी CJM कोर्ट में दाखिल करा दें ताकि रिकॉर्ड में यह साफ़ रहे और बाद में कोई गलतफहमी न हो।
