Unit 7:Computer Network

🌐 1. डेटा संप्रेषण (Data Communication) और कंप्यूटर नेटवर्क का परिचय

डेटा संप्रेषण का अर्थ है दो डिवाइसेज़ (जैसे कंप्यूटर, मोबाइल) के बीच डेटा का आदान-प्रदान किसी माध्यम (केबल या वायरलेस) के द्वारा।
कंप्यूटर नेटवर्क एक ऐसा सिस्टम होता है जिसमें कई कंप्यूटर और डिवाइसेज़ आपस में जुड़े होते हैं ताकि वे जानकारी और संसाधनों (जैसे प्रिंटर, इंटरनेट) को साझा कर सकें।


🔗 2. नेटवर्क टोपोलॉजी (Network Topologies)

नेटवर्क में कंप्यूटर और अन्य डिवाइसेज़ कैसे जुड़े हैं, इसे टोपोलॉजी कहा जाता है।

  1. बस (Bus) – सभी डिवाइस एक ही मुख्य केबल से जुड़े होते हैं।
  2. स्टार (Star) – सभी डिवाइस एक सेंट्रल डिवाइस (हब/स्विच) से जुड़े होते हैं।
  3. रिंग (Ring) – सभी डिवाइस एक रिंग (वृत्त) में जुड़े होते हैं।
  4. मेश (Mesh) – हर डिवाइस, हर दूसरी डिवाइस से जुड़ी होती है।
  5. ट्री (Tree) – स्टार और बस का मिश्रण।
  6. हाइब्रिड (Hybrid) – दो या अधिक टोपोलॉजी का संयोजन।

🌍 3. कंप्यूटर नेटवर्क का वर्गीकरण (Classification of Computer Networks)

  1. PAN (पर्सनल एरिया नेटवर्क) – जैसे ब्लूटूथ, हेडफोन।
  2. LAN (लोकल एरिया नेटवर्क) – एक कार्यालय या स्कूल के अंदर।
  3. MAN (मेट्रोपॉलिटन एरिया नेटवर्क) – एक शहर के अंदर।
  4. WAN (वाइड एरिया नेटवर्क) – देश या पूरी दुनिया में फैला हुआ (जैसे इंटरनेट)।
  5. CAN (कैंपस एरिया नेटवर्क) – कॉलेज या यूनिवर्सिटी कैंपस के लिए।

🔁 4. पैरेलल और सीरियल ट्रांसमिशन

  • पैरेलल ट्रांसमिशन – कई बिट्स को एक साथ कई तारों से भेजा जाता है।
  • सीरियल ट्रांसमिशन – बिट्स को एक-एक करके एक ही तार से भेजा जाता है।

🔄 5. ट्रांसमिशन मॉडल्स (Transmission Models)

  1. सिंप्लेक्स (Simplex) – डेटा केवल एक दिशा में जाता है (जैसे टीवी)।
  2. हाफ डुप्लेक्स (Half-Duplex) – दोनों दिशाओं में डेटा जा सकता है, लेकिन एक समय में एक ही दिशा में (जैसे वॉकी-टॉकी)।
  3. फुल डुप्लेक्स (Full-Duplex) – डेटा दोनों दिशाओं में एक साथ जा सकता है (जैसे मोबाइल कॉल)।

📡 6. ट्रांसमिशन चैनल (Transmission Channel)

डेटा भेजने का माध्यम:

  • वायर्ड (तार वाला): ट्विस्टेड पेयर, को-ऐक्सियल, फाइबर ऑप्टिक
  • वायरलेस: रेडियो तरंगें, माइक्रोवेव, इंफ्रारेड

🚀 7. डेटा रेट, बैंडविड्थ और सिग्नल

  • डेटा रेट – प्रति सेकंड कितने बिट्स ट्रांसफर हो रहे हैं।
  • बैंडविड्थ – उस चैनल की क्षमता जिसमें डेटा ट्रांसफर हो सकता है (हर्ट्ज़ में मापा जाता है)।
  • सिग्नल – डेटा को दर्शाने वाला संकेत (एनालॉग या डिजिटल)।

🔏 8. एन्कोडिंग स्कीम्स (Encoding Schemes)

डिजिटल डेटा को ट्रांसमिट करने के लिए सिग्नल में कैसे बदला जाता है:

  • डिजिटल एन्कोडिंग: NRZ, मैनचेस्टर, AMI
  • एनालॉग एन्कोडिंग: AM (ऐंप्लिट्यूड मॉडुलेशन), FM (फ्रीक्वेंसी मॉडुलेशन)

🗜️ 9. डेटा संपीड़न (Data Compression)

डेटा के आकार को छोटा करने की प्रक्रिया:

  • लॉसलेस (Lossless) – कोई डेटा नहीं खोता (जैसे ZIP फाइल)।
  • लॉसी (Lossy) – कुछ डेटा हटाया जाता है जिससे आकार छोटा हो जाता है (जैसे MP3, JPEG)।

⚠️ 10. ट्रांसमिशन की गड़बड़ियाँ (Transmission Impairments)

डेटा ट्रांसमिशन के दौरान आने वाली परेशानियाँ:

  • अटेन्युएशन – दूरी बढ़ने पर सिग्नल कमजोर हो जाता है।
  • नॉइज़ – अनचाहे सिग्नल (जैसे बिजली की गड़गड़ाहट)।
  • डिस्टॉर्शन – सिग्नल का आकार बदल जाता है।
  • लेटेंसी – डेटा पहुँचने में देरी।

🧱 11. लेयरिंग और डिज़ाइन समस्याएँ

नेटवर्क को अलग-अलग स्तरों (layers) में बांटने से डिज़ाइन और समस्या सुलझाना आसान होता है।
मुख्य डिज़ाइन समस्याएँ:

  • एड्रेसिंग
  • रूटिंग
  • एरर कंट्रोल
  • फ्लो कंट्रोल
  • सिक्योरिटी

📘 12. OSI मॉडल (7 लेयर वाला मॉडल)

यह एक थ्योरी पर आधारित मॉडल है जिसमें नेटवर्क कम्युनिकेशन को 7 लेयर में बाँटा गया है:

  1. फिजिकल लेयर – तारें, सिग्नल, बिट ट्रांसफर
  2. डेटा लिंक लेयर – फ्रेमिंग, MAC एड्रेस, एरर डिटेक्शन
  3. नेटवर्क लेयर – IP एड्रेस, रूटिंग
  4. ट्रांसपोर्ट लेयर – TCP/UDP के माध्यम से डेटा ट्रांसफर
  5. सेशन लेयर – सेशन को शुरू, मेंटेन और बंद करना
  6. प्रेजेंटेशन लेयर – डेटा ट्रांसलेशन, एन्क्रिप्शन
  7. एप्लिकेशन लेयर – यूज़र से डायरेक्ट इंटरफेस (जैसे ब्राउज़र, ईमेल)

🌐 13. TCP/IP मॉडल (4 लेयर वाला मॉडल)

यह इंटरनेट में इस्तेमाल किया जाने वाला प्रैक्टिकल मॉडल है:

  1. एप्लिकेशन लेयर – HTTP, FTP, SMTP
  2. ट्रांसपोर्ट लेयर – TCP/UDP
  3. इंटरनेट लेयर – IP, रूटिंग
  4. नेटवर्क एक्सेस लेयर – MAC एड्रेस, फिजिकल ट्रांसमिशन

🧱 Data Link Layer (डेटा लिंक लेयर)

OSI मॉडल की दूसरी लेयर होती है – डेटा लिंक लेयर। इसका मुख्य काम है:

  • डेटा को फ्रेम्स (frames) में पैक करना
  • त्रुटियों (Errors) को पहचानना और सुधारना
  • और फ्लो कंट्रोल लागू करना

1. Need for Data Link Control (डेटा लिंक नियंत्रण की आवश्यकता)

डेटा लिंक कंट्रोल जरूरी होता है ताकि:

  • डेटा सही क्रम में पहुँचे
  • कोई डेटा लॉस या डुप्लीकेशन न हो
  • अगर कोई एरर हो, तो उसे सुधारा जा सके
  • और ट्रांसमीटर व रिसीवर के बीच सिंक्रोनाइज़ेशन बना रहे

इसलिए हम Flow Control और Error Control तकनीकों का उपयोग करते हैं।


🧱 2. Frame Design Considerations (फ्रेम डिज़ाइन के मापदंड)

डेटा को फ्रेम्स में बांटने के लिए हमें कुछ बातें ध्यान में रखनी पड़ती हैं:

  • फ्रेमिंग विधि: यह तय करती है कि डेटा को कहां से कहां तक फ्रेम माना जाएगा
    • जैसे: Character count, Flag-based, Bit stuffing, Byte stuffing
  • हैडर और ट्रेलर: हर फ्रेम में एड्रेसिंग, एरर चेकिंग आदि के लिए जोड़े जाते हैं
  • सिंकिंग और सिग्नलिंग: ताकि रिसीवर को पता चले फ्रेम कहाँ शुरू और कहाँ खत्म होता है

🔄 3. Flow Control (फ्लो कंट्रोल)

Flow Control का उद्देश्य है कि:

  • सेंडर और रिसीवर की गति संतुलित बनी रहे
  • रिसीवर को इतना डेटा न भेजा जाए कि वह उसे संभाल न पाए

प्रमुख तकनीकें:

  1. Stop-and-Wait Protocol – एक बार में एक फ्रेम भेजो, और acknowledgment का इंतजार करो
  2. Sliding Window Protocol – कई फ्रेम्स एक साथ भेजे जा सकते हैं, acknowledgment बाद में आता है

🧪 4. Error Control (त्रुटि नियंत्रण)

Error Control यह सुनिश्चित करता है कि:

  • भेजे गए डेटा में कोई गलती हो तो उसे डिटेक्ट किया जा सके
  • और अगर संभव हो तो सुधारा जा सके

तकनीकें:

  • Error Detection:
    • Parity Bit
    • Checksum
    • CRC (Cyclic Redundancy Check)
  • Error Correction:
    • ARQ (Automatic Repeat Request)
    • FEC (Forward Error Correction)

📶 MAC Sublayer (मैक सबलेयर)

MAC का मतलब है Media Access Control। यह डेटा लिंक लेयर का एक हिस्सा है जो यह तय करता है कि कौन-सा डिवाइस कब मीडिया (केबल/चैनल) का उपयोग करेगा।

दो मुख्य प्रकार हैं:


⚔️ 5. Contention-Based MAC Protocols (प्रतिस्पर्धा आधारित)

इसमें सभी डिवाइसेज़ एक साथ डेटा भेजने की कोशिश करती हैं। जो पहले भेज देता है, वही सफल होता है।

उदाहरण:

  1. ALOHA
    • Pure ALOHA
    • Slotted ALOHA
  2. CSMA (Carrier Sense Multiple Access)
    • CSMA/CD (Collision Detection – Ethernet)
    • CSMA/CA (Collision Avoidance – Wi-Fi)

👉 ये प्रो토कॉल टकराव (collision) को हैंडल करते हैं।


🧭 6. Polling-Based MAC Protocols (पोलिंग आधारित)

इसमें एक सेंट्रल डिवाइस होता है (जैसे master), जो अन्य डिवाइसेज़ को पूछता है (poll करता है) कि क्या वे डेटा भेजना चाहती हैं।

प्रकार:

  1. Polling – एक-एक करके पूछता है
  2. Token Passing – एक “टोकन” घूमता रहता है; जिसके पास टोकन है वही ट्रांसमिट कर सकता है

👉 ये तरीका ज्यादा नियंत्रित और कम टकराव वाला होता है।


📌 संक्षेप में:

विषयविवरण
डेटा लिंक कंट्रोलडेटा की विश्वसनीयता और अनुशासन बनाए रखता है
फ्रेम डिज़ाइनडेटा पैकेजिंग का तरीका
फ्लो कंट्रोलसेंडर और रिसीवर की गति में संतुलन
एरर कंट्रोलडेटा में हुई गलतियों को पहचानना और सुधारना
MAC सबलेयरतय करता है कि मीडिया का उपयोग कब और कौन करेगा
प्रतिस्पर्धात्मक MACडिवाइसेज़ खुद तय करती हैं कब भेजना है
पोलिंग आधारित MACएक नियंत्रक डिवाइस अनुमति देता है भेजने के लिए

🌐 Network Layer (नेटवर्क लेयर)

OSI मॉडल की तीसरी लेयर होती है – Network Layer
इसका मुख्य कार्य है:

  • डाटा को एक नेटवर्क से दूसरे नेटवर्क तक पहुँचाना
  • पैकेट्स को रूट करना (Routing)
  • IP एड्रेसिंग और इंटरनेटवर्किंग करना

🚦 1. Routing (रूटिंग)

Routing का अर्थ है – सही रास्ता चुनकर डेटा पैकेट को गंतव्य (destination) तक पहुँचाना।

रूटिंग टेबल का उपयोग किया जाता है जिसमें यह जानकारी होती है:

  • कौन से रास्ते से डेटा भेजा जाए
  • कौन सा अगला होप (next hop) है

रूटिंग के प्रकार:

  1. Static Routing – मैन्युअली सेट किया जाता है
  2. Dynamic Routing – ऑटोमैटिकली अपडेट होता है (e.g. RIP, OSPF, BGP)

⚠️ 2. Congestion Control (भीड़ नियंत्रण)

जब नेटवर्क में बहुत ज्यादा ट्रैफिक हो जाता है और डेटा धीमा या खो जाता है, उसे Congestion (भीड़) कहते हैं।

नियंत्रण के तरीके:

  • Traffic Shaping – डेटा भेजने की गति को नियंत्रित करना
  • Admission Control – नए डेटा को रोकना जब नेटवर्क व्यस्त हो
  • Load Balancing – डेटा को अलग-अलग रास्तों में बाँटना

🔗 3. Internetworking Principles (इंटरनेटवर्किंग सिद्धांत)

Internetworking का मतलब है अलग-अलग प्रकार के नेटवर्क को आपस में जोड़ना ताकि वे आपस में डेटा एक्सचेंज कर सकें।

उदाहरण: LAN ↔ WAN ↔ Internet

इसे संभव बनाते हैं:

  • Routers
  • Gateways
  • Bridges

📡 4. Internet Protocols (IPv4)

🌍 IPv4 (Internet Protocol version 4)

IPv4 सबसे पुराना और सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाला इंटरनेट प्रोटोकॉल है।


📦 Packet Format (IPv4 पैकेट फॉर्मेट)

IPv4 पैकेट का मुख्य ढांचा:

FieldDetails
VersionIP का वर्जन (4)
Header Lengthहेडर की लंबाई
Type of ServicePacket की priority
Total Lengthपूरा पैकेट का साइज
Identification, Flags, Fragment OffsetFragmentation के लिए
TTL (Time to Live)पैकेट कितनी दूर तक जा सकता है
ProtocolTCP या UDP
Header ChecksumError checking
Source Addressभेजने वाले की IP
Destination Addressपाने वाले की IP
Options + PaddingExtra जानकारी (optional)
DataActual डेटा

🏛 Hierarchical Addressing (स्तरीय IP एड्रेसिंग)

IPv4 एड्रेसिंग एक हाइरार्किकल सिस्टम है जिसमें:

  • नेटवर्क पार्ट – बताता है किस नेटवर्क में है
  • होस्ट पार्ट – बताता है नेटवर्क के अंदर कौन सा डिवाइस है

🧮 Subnetting (सबनेटिंग)

Subnetting का मतलब है – एक बड़े नेटवर्क को छोटे-छोटे हिस्सों (subnets) में बाँटना।

  • इससे IP एड्रेस का efficient उपयोग होता है
  • और नेटवर्क को logically divide किया जा सकता है

उदाहरण:

IP: 192.168.1.0/24 → दो Subnet बनाना हो
तो new subnet mask: /25
Result:

  • 192.168.1.0 - 192.168.1.127
  • 192.168.1.128 - 192.168.1.255

🌐 ARP (Address Resolution Protocol)

ARP का काम होता है – किसी IP Address को उसके MAC Address में बदलना

उदाहरण:
किसी IP (192.168.1.5) का MAC जानने के लिए ARP Request भेजा जाता है।


🔌 PPP (Point to Point Protocol)

PPP का उपयोग दो नेटवर्क डिवाइस (जैसे मॉडेम और राउटर) के बीच डायरेक्ट लिंक स्थापित करने के लिए किया जाता है।

फ़ीचर्स:

  • Authentication (जैसे PAP, CHAP)
  • Error Detection
  • Multi-Protocol Support

🔧 5. Bridges और Routers

🌉 Bridges (ब्रिजेस)

  • दो LANs को जोड़ते हैं
  • MAC Address के आधार पर डेटा ट्रांसफर करते हैं
  • Data Link Layer पर काम करते हैं

📡 Routers (राउटर्स)

  • Multiple नेटवर्क्स को जोड़ते हैं
  • IP Address के आधार पर रूटिंग करते हैं
  • Network Layer पर काम करते हैं
  • इंटरनेट का मुख्य घटक

🆔 6. Classless IP Addressing (CIDR – Classless Inter-Domain Routing)

पुरानी IP Class System (Class A, B, C) को हटा कर अब IP को CIDR Notation में इस्तेमाल किया जाता है।

उदाहरण:

  • 192.168.10.0/24 – इसका मतलब है कि पहले 24 बिट नेटवर्क के लिए और बाकी होस्ट के लिए हैं।

CIDR से:

  • IP का ज्यादा लचीलापन मिलता है
  • IP एड्रेस की बचत होती है
  • रूटिंग टेबल छोटी होती है

📚 संक्षेप में सारांश

टॉपिकमुख्य कार्य
Routingडेटा के लिए सबसे अच्छा रास्ता चुनना
Congestion Controlनेटवर्क ट्रैफिक को संतुलित करना
Internetworkingअलग-अलग नेटवर्क को जोड़ना
IPv4इंटरनेट पर डेटा भेजने का तरीका
Packet Formatपैकेट के अंदर का ढांचा
Subnettingबड़े नेटवर्क को छोटे हिस्सों में बाँटना
ARPIP से MAC Address पता करना
PPPदो डिवाइसों के बीच लिंक बनाना
Bridgesदो LAN को जोड़ना
Routersकई नेटवर्क को जोड़ना और रूटिंग करना
CIDRClass के बिना IP ऐड्रेसिंग करना

📶 Data Link Layer और Process-to-Process Communication

हालांकि Process-to-Process Communication मुख्य रूप से Transport Layer का कार्य होता है, लेकिन इसे समझना जरूरी है क्योंकि यह पूरे नेटवर्क संप्रेषण प्रक्रिया से जुड़ा है।


🧑‍💻 1. Process-to-Process Communication (प्रोसेस से प्रोसेस संचार)

  • इसमें दो कंप्यूटर पर चल रही सॉफ्टवेयर प्रोसेस (applications) आपस में डेटा का आदान-प्रदान करती हैं।
  • उदाहरण: एक कंप्यूटर पर चल रहा वेब ब्राउज़र (client process) दूसरे कंप्यूटर के वेब सर्वर (server process) से वेबसाइट डेटा मांगता है।

🔁 यह संचार end-to-end communication कहलाता है और इसके लिए port numbers का उपयोग होता है।


🔌 2. Socket (सॉकेट) और Socket Address

📍 Socket क्या है?

Socket एक प्रोग्रामिंग इंटरफ़ेस (API) है जो दो प्रोसेस को नेटवर्क पर एक-दूसरे से डाटा भेजने और प्राप्त करने की अनुमति देता है।

एक तरह से यह communication का interface होता है OS और application के बीच।

🏷️ Socket Address क्या होता है?

Socket Address = IP Address + Port Number

उदाहरण:

  • IP: 192.168.1.10
  • Port: 80

तो Socket Address होगा: 192.168.1.10:80

👉 यह uniquely identify करता है कि किस कंप्यूटर की कौन सी एप्लिकेशन से communication हो रहा है।


🔁 3. Multiplexing (मल्टीप्लेक्सिंग)

Multiplexing का मतलब होता है – एक माध्यम से अनेक प्रोसेसेज़ या एप्लिकेशन को डेटा ट्रांसफर की अनुमति देना।

🔼 Upward Multiplexing

  • एक ही Transport Layer connection को कई Application Layer प्रोसेस use करती हैं।
  • उदाहरण: एक TCP connection पर कई webpages open होना।

🔽 Downward Multiplexing

  • एक ही Application प्रोसेस, कई Transport connections का उपयोग करती है।
  • उदाहरण: एक video streaming app जो अलग-अलग connections से video और audio डेटा लेती है।

📦 4. UDP (User Datagram Protocol)

  • UDP एक connectionless, fast और lightweight transport protocol है।
  • यह कोई error checking, sequencing या acknowledgment नहीं करता।

📌 विशेषताएँ:

  • कोई गारंटी नहीं कि डेटा पहुँचेगा
  • Broadcasting और real-time apps में उपयोगी (जैसे VoIP, Gaming)
  • हेडर छोटा होता है (8 bytes)

📦 5. TPDU (Transport Protocol Data Unit)

  • TPDU वह data unit है जो transport layer द्वारा transmit की जाती है।
  • जब डेटा ऊपर से नीचे आता है, तो वह segment में convert होता है — इसी को TPDU कहते हैं।

📍TPDU = Header (Transport Layer Info) + Payload (Actual Data)

उदाहरण:
TCP TPDU → TCP Header + App Data
UDP TPDU → UDP Header + App Data


📚 संक्षेप में सारांश

टॉपिकविवरण
Process-to-Process Communicationदो एप्लिकेशन प्रोसेस के बीच डेटा ट्रांसफर
Socketनेटवर्क संचार का प्रोग्रामिंग इंटरफेस
Socket AddressIP + Port (e.g., 192.168.1.1:80)
Upward Multiplexingएक ट्रांसपोर्ट चैनल → कई एप्लिकेशन
Downward Multiplexingएक एप्लिकेशन → कई ट्रांसपोर्ट चैनल
UDPFast, unreliable protocol without connection
TPDUTransport Layer का डेटा यूनिट

🌐 Application Layer (एप्लिकेशन लेयर)

OSI मॉडल की 7वीं लेयर होती है — Application Layer
यह यूज़र और नेटवर्क के बीच सीधा इंटरफेस प्रदान करती है।
Application Layer वे सर्विसेस देती है जो नेटवर्क पर कम्युनिकेशन के लिए एप्लिकेशन्स को चाहिए होती हैं।


💡 Application Layer के प्रमुख प्रोटोकॉल्स:


1. 🌍 HTTP (Hypertext Transfer Protocol)

  • यह वेब ब्राउज़र और वेब सर्वर के बीच डाटा ट्रांसफर करने के लिए प्रयोग होता है।
  • वेब पेज को लाने के लिए ब्राउज़र HTTP का उपयोग करता है।

📌 विशेषताएँ:

  • Port Number: 80
  • Stateless (हर रिक्वेस्ट स्वतंत्र होती है)
  • GET, POST, PUT, DELETE जैसे methods का प्रयोग करता है
  • HTTP का secure version है: HTTPS (Port 443)

📎 उदाहरण:
जब आप कोई वेबसाइट खोलते हैं — जैसे https://www.google.com — तो ब्राउज़र HTTP/HTTPS के ज़रिए उस साइट से कनेक्ट करता है।


2. 📂 FTP (File Transfer Protocol)

  • इसका उपयोग नेटवर्क पर फाइल भेजने और प्राप्त करने के लिए होता है।

📌 विशेषताएँ:

  • Port Number: 21 (control), 20 (data)
  • User authentication (username/password)
  • Reliable file transfer
  • Active और Passive mode

📎 उदाहरण:
आप वेबसाइट फाइल्स को सर्वर पर अपलोड करना चाहते हैं — इसके लिए आप FTP Client (जैसे FileZilla) का उपयोग करते हैं।


3. 💻 Telnet (Telecommunication Network)

  • यह प्रोटोकॉल रिमोट डिवाइस पर कमांड लाइन एक्सेस देने के लिए होता है।

📌 विशेषताएँ:

  • Port Number: 23
  • Remote login के लिए प्रयोग होता है
  • Unsecured है (डेटा plaintext में जाता है)
  • आजकल इसकी जगह SSH का प्रयोग अधिक होता है

📎 उदाहरण:
किसी रिमोट सर्वर को कंट्रोल करने के लिए, पहले Telnet से लॉग-इन किया जाता था।


4. ✉️ SMTP (Simple Mail Transfer Protocol)

  • यह ईमेल भेजने (sending) के लिए प्रयोग किया जाता है।

📌 विशेषताएँ:

  • Port Number: 25 (default), 587 (secure)
  • केवल ईमेल भेजने के लिए — पढ़ने के लिए IMAP/POP3 प्रयोग होते हैं
  • Mail Servers के बीच कम्युनिकेशन के लिए

📎 उदाहरण:
जब आप Gmail से किसी को ईमेल भेजते हैं, तो पीछे SMTP प्रोटोकॉल काम कर रहा होता है।


5. 📡 SNMP (Simple Network Management Protocol)

  • यह प्रोटोकॉल नेटवर्क डिवाइसेज़ (जैसे राउटर, स्विच) की मॉनिटरिंग और मैनेजमेंट के लिए प्रयोग होता है।

📌 विशेषताएँ:

  • Port Number: 161 (query), 162 (trap)
  • नेटवर्क एडमिनिस्ट्रेशन में उपयोगी
  • SNMP Agent और SNMP Manager के बीच डाटा एक्सचेंज होता है

📎 उदाहरण:
किसी कंपनी के नेटवर्क में SNMP का उपयोग करके देखा जाता है कि कौन-सा डिवाइस ऑन है, कितना डेटा चल रहा है, आदि।


📚 संक्षेप में सारांश:

प्रोटोकॉलकार्यपोर्ट नंबरप्रयोग
HTTPवेब पेज ट्रांसफर80ब्राउज़र में वेबसाइट खोलना
FTPफाइल ट्रांसफर21 (control), 20 (data)फाइल भेजना/डाउनलोड करना
Telnetरिमोट लॉगिन23दूर के सिस्टम को कमांड लाइन से कंट्रोल करना
SMTPईमेल भेजना25 / 587मेल सर्वर से मेल भेजना
SNMPनेटवर्क मॉनिटरिंग161 / 162राउटर, स्विच की जानकारी लेना

🔚 निष्कर्ष:

Application Layer वे सभी नेटवर्क आधारित सेवाएं प्रदान करती है जिनसे यूज़र सीधे इंटरैक्ट करता है — जैसे वेब ब्राउज़िंग, ईमेल भेजना, फाइल ट्रांसफर करना, नेटवर्क मैनेज करना आदि।